इंसुलिन से छुटकारे का दावा हो सकता है जानलेवा, विशेषज्ञ डॉक्टर्स की सलाह पर ही करें भरोसा
खास बातें
- विशेषज्ञों की राय- डायबिटीज के कारण एक बार हुए नुकसान की भरपाई संभव नहीं
- आनुवांशिक कारणों से होने वाली टाइप-1 की डायबिटीज को खत्म करना मुश्किल
- 25 साल के बाद टाइप-2 की कैटेगरी की डायबिटीज होने की ज्यादा संभावना
डायबिटीज की बीमारी महामारी बनती जा रही है। यही कारण है कि इस स्थिति का लाभ उठाने के लिए कई लोग तरह-तरह के दावे भी करते हैं। कुछ लोगों का दावा होता है कि वे डायबिटीज के पुराने से पुराने मरीज का इंसुलिन लेना बंद करवा सकते हैं और उन्हें हमेशा के लिए डायबिटीज से छुटकारा दिला सकते हैं। लेकिन इस क्षेत्र में काम कर रहे विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह का दावा भ्रामक हो सकता है। सही तरीके से विश्लेषण के बिना इंसुलिन लेना बंद कर दिया जाए, तो इससे मरीज की जान भी जा सकती है।
टाइप-1 की डायबिटीज को खत्म करना मुश्किल
सफदरजंग अस्पताल में अंतःस्रावी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णा बिस्वास के मुताबिक कम उम्र में यानी बारह-चौदह वर्ष की अवस्था से लेकर 25 वर्ष तक की उम्र में डायबिटीज होने की बात सामने आती है, तो इसके टाइप-1 की कैटेगरी में होने की संभावना ज्यादा होती है। आनुवांशिक कारणों से होने वाली टाइप-1 की डायबिटीज को खत्म करना मुश्किल होता है। टाइप-1 डायबिटीज में शरीर में प्राकृतिक रुप से इंसुलिन पैदा होने की संभावना न के बराबर होती है और इसलिए इस तरह के केसों में आजीवन इंसुलिन के इंजेक्शन लेने की आवश्यकता पड़ती है। हालांकि, लाइफ स्टाइल में अपेक्षित परिवर्तन करके इसके नकारात्मक प्रभावों को बहुत हद तक कम किया जा सकता है।
25 साल के बाद टाइप-2 डायबिटीज
आजकल पचीस वर्ष से अधिक उम्र में डायबिटीज सामने आती है, तो इसके टाइप-2 की कैटेगरी की डायबिटीज होने की ज्यादा संभावना होती है। इसके लाइफ स्टाइल में आए परिवर्तन के कारण होने की संभावना ज्यादा होती है। शारीरिक गतिविधि बढ़ाकर और उचित खानपान को बढ़ावा देकर इसका असर बहुत हद तक कम किया जा सकता है। लेकिन एक बार डायबिटीज की चपेट में आ जाने के बाद हमेशा शारीरिक गतिविधियों के प्रति सजग रहने और खानपान में सावधानी बरतने की जरूरत पड़ती है। इनमें लापरवाही दुबारा डायबिटीज की चपेट में ले जाने का कारण बन जाती है।
डैमेज कंट्रोल संभव नहीं
डॉ. कृष्णा बिस्वास के मुताबिक, डायबिटीज के मामले में यह बात ध्यान रखने योग्य है कि इसके कारण शरीर के किसी भी हिस्से में होने वाला नुकसान दुबारा वापिस नहीं लाया जा सकता। केवल इसके नुकसान को आगे बढ़ने से रोका जा सकता है। इसी कारण से डायबिटीज की पहचान कुछ समय के अंतराल पर लगातार करवाते रहना चाहिए। सबसे बेहतर है कि जीवन शैली में अपेक्षित परिवर्तन कर डायबिटीज को पास आने से रोकना चाहिए।
बच्चों की पढ़ाई के साथ खेल को भी दें अहमियत
विशेषज्ञ का कहना है कि अगर बच्चों में शारीरिक गतिविधियों की कमी के कारण मोटापा बढ़ता है, तो इससे उनकी मानसिक गतिविधि भी प्रभावित होती है। इसका सीधा असर उनकी पढ़ाई पर पड़ता है। मोटापे के बढ़ने से उनके डाइबिटीज जैसी बीमारी के चपेट में आने की संभावना भी बढ़ती है। इसलिए पढ़ाई के साथ-साथ उनकी शारीरिक गतिविधि बनाए रखने की कोशिश भी की जानी चाहिए।
डॉक्टर कृष्णा बिस्वास ने बताया कि आजकल के शहरी जीवन ने बच्चों के खेलने की जगहों में भारी कमी कर दी है। स्कूलों में भी खेल गतिविधियों में कमी आई है। इसके साथ ही फास्ट फूड के बढ़ते चलन के कारण बच्चों में चीनी और फैट की मात्रा जरूरत से ज्यादा बढ़ रही है। यही कारण है कि बच्चों में मोटापे की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। यह अंततः बच्चों में डायबिटीज को बढ़ावा दे रहा है।
डॉक्टर कृष्णा बिस्वास ने बताया कि आजकल के शहरी जीवन ने बच्चों के खेलने की जगहों में भारी कमी कर दी है। स्कूलों में भी खेल गतिविधियों में कमी आई है। इसके साथ ही फास्ट फूड के बढ़ते चलन के कारण बच्चों में चीनी और फैट की मात्रा जरूरत से ज्यादा बढ़ रही है। यही कारण है कि बच्चों में मोटापे की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। यह अंततः बच्चों में डायबिटीज को बढ़ावा दे रहा है।